पॊय्गै आऴ्वार | Poigai Alvar
॥ सामान्य विवरण ॥

नाम : पॊय्गै आऴ्वार
जन्म काल : 7वीं ई.पू.
जन्म स्थान : तिरुवॆक्का, कांचीपुरम
मास: आश्विन
नक्षत्र : श्रवण
जन्म दिन : मंगलवार
अंश : पांचजन्य (शंख)
रचनाएँ : प्रथम तिरुवंतादि
गीताएँ : 100

॥ पॊय्गै आऴ्वार की गाथा ॥

तिरुवॆक्का (जिसे "यथोक्तकर सन्निधि" भी कहा जाता है), जो कांचीपुरम में है, में श्रीमन्नारायण का परिपूर्ण अनुग्रह (आशीर्वाद) है। यथोक्तकर भगवान मंदिर के नज़दीक, एक पॊय्गै (छोटा तालाब) है, जो सुंदर ताजे कमल के फूलों से भरा हुआ है। चॊन्न वण्णम् चॆय्द पॆरुमाऴ, इस तालाब के करीब रहते हैं और पूरी दुनिया को अपनी सेवा दे रहे हैं।

इस महाक्षेत्र में जो तालाब पाया जाता है, उसकी एक और विशेषता कही जा सकती है। सिद्धार्थ वर्ष, आश्विन माह, शुक्ल अष्टमी, श्रवण नक्षत्र सहित मंगलवार में, पांचजन्य शंख [श्रीमन्नारायण के पंचायुध (5 हथियार) में से एक] के अंश के रूप में, पॊय्गै आऴ्वार का जन्म इस दुनिया में हुआ था। चूँकि, इनका जन्म इस पॊय्गै (तालाब) में हुआ था, इसलिए इन्हें "पॊय्गै आऴ्वार" कहा जाता है।

बचपन से ही उनकी सोच हमेशा सर्वशक्तिमान श्रीमन्नारायण पर ही थी और उन्होंने मन बना लिया था कि उन्हें उनका अनुसरण करना चाहिए और उनकी प्रसिद्धि को दुनिया भर में फैलाना चाहिए। उन्होंने वैष्णवों की सारी वाणी सीखी और उसके अनुसार आचरण किया तथा एक वैष्णव को जैसा होना चाहिए वैसा ही अपना जीवन व्यतीत किया।

तिरुमाल की भक्ति की महानता को जानने के बाद, उन्होंने सोचा कि उनकी प्रसिद्धि को पूरी दुनिया के सभी मनुष्यों तक फैलाना चाहिए। इसलिए उन्होंने प्यार, गुस्सा और धन कमाने का मन रखना इत्यादि सभी सामान्य मानवीय चरित्रों को छोड़ दिए।

पॊय्गै आऴ्वार ने प्रबंधम के पहले 100 पद्यों की रचना की, जो 'वैयम् तगळिया वार्कडले नॆय्याग' (ब्रह्मांड दीप दान होगा और महासागर ही घी होगा) शब्दों से शुरू होते हैं।

वैयम् तगळिया वार्कडले नॆय्याग
वॆय्य कदिरोन् विळक्कागच् - चॆय्य
चुडर् आऴियान् अडिक्के चूटिनेन्
चॊल्मालै इडराऴि नीङ्गुगवे ऍन्ऱु।

[वैयम् = ब्रह्मांड ; तगळिया = दीप दान होगा ; वार्कडले = महासागर ही ; नॆय्याग = घी होगा ; वॆय्य कदिरोन् विळक्कागच् चॆय्य = धधकते सूरज को दीपक बनाकर ; चुडर् आऴियान् अडिक्के = प्रज्वलन चक्रधारी के चरणों में ही ; चूटिनेन् चॊल्मालै = शब्दों की माला (कविता) चढ़ाया ; इडराऴि नीङ्गुगवे ऍन्ऱु = दुखों के सागर को दूर करने के लिए]

"ब्रह्मांड दीपदान होगा, महासागर ही घी होगा। धधकते सूरज को दीपक बनाकर, उन किरणों में प्रभु श्रीमन्नारायण की आराधना करने जा रहा हूँ। उन प्रज्वलन चक्रधारी के चरणों में ही, मैंने, दुखों के सागर को दूर करने के लिए, शब्दों की माला (कविता) चढ़ाया।"

॥ पॊय्गै आऴ्वार द्वारा कुंभाभिषेचित दिव्य देशों ॥
पॊय्गै आऴ्वार ही सबसे अधिक दिव्य देशों में गायन के लिए गए और उन्होंने भगवान श्रीमन्नारायण की आज्ञा का पालन किया।

कुल 108 दिव्य देशों में से पॊय्गै आऴ्वार ने अन्य आऴ्वारों ने 6 मंदिरों का अभिषेक किया।

पॊय्गै आऴ्वार, तिरुमंगै आऴ्वार (1)
1. कांचीपुरम (आदि केशव पॆरुमाळ मंदिर, अष्टभुज, कांचीपुरम)

पॊय्गै आऴ्वार, भूतत्ताऴ्वार, तिरुमंगै आऴ्वार (1)
2. तिरुक्कोयिलुर (त्रिविक्रम मंदिर, तिरुक्कोयिलुर, विऴुपुरम)

पॊय्गै आऴ्वार, तिरुमंगै आऴ्वार, पेयाऴ्वार, तिरुमऴिसै आऴ्वार (1)
3. तिरुवॆक्का (चॊन्न वण्णम चॆय्द पॆरुमाळ मंदिर, तिरुवॆक्का, कांचीपुरम)

पॊय्गै आऴ्वार, भूतत्ताऴ्वार, पॆयाऴ्वार, नम्माऴ्वार, आंडाळ, पॆरियाऴ्वार, तिरुमंगै आऴ्वार, कुलशेखर आऴ्वार, तिरुमऴिसै आऴ्वार, तिरुप्पाणाऴ्वार (2)
4. तिरुपति (श्री वेंकटाचलपति मंदिर, तिरुपति, चित्तूर, आंध्र प्रदेश)
5. तिरुपाऱ्कडल (श्री क्षीराब्धिनाथ, क्षीरसागर)

पॊय्गै आऴ्वार, भूतत्ताऴ्वार, पॆयाऴ्वार, नम्माऴ्वार, आंडाळ, पॆरियाऴ्वार, तिरुमंगै आऴ्वार, कुलशेखर आऴ्वार, तिरुमऴिसै आऴ्वार, तिरुप्पाणाऴ्वार, तॊण्डरडिप्पॊडि आऴ्वार (1)
6. श्रीरंगम (श्री रंगनाथ भगवान मंदिर, श्रीरंगम, तिरुच्चिराप्पळ्ळि)

॥ आऴ्वार तिरुवटिगळे शरणम ॥