क्यों हैं भगवान् श्रीहरि महाविष्णु जी के चार हाथ ?

Sri Mahavishnu Info
हम सभी जानते हैं कि भगवान् श्रीहरि महाविष्णु जी सर्वोच्च भगवान् और परम रक्षक हैं। वे सर्वव्यापी है और सभी प्राणियों से श्रेष्ठ हैं। उनके चार शक्तिशाली हाथ हैं जो उनकी शक्तिशाली और सब व्यापक प्रकृति का संकेत देते हैं। उनके सामने के दो हाथ, जो पद्म और गदा को धारण करते हैं, भौतिक अस्तित्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। चक्र एवं शंख को धारण करनेवाले पीठ के दो हाथ, आध्यात्मिक दुनिया में उनकी उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करते हैं।

भगवान् श्रीहरि महाविष्णु जी के चार हाथ अंतरिक्ष की चारों दिशाओं पर उनका प्रभुत्व व्यक्त करते हैं। उनके चार हाथ मानव जीवन के चार चरणों और चार आश्रमों के रूप का प्रतीक भी हैं :
1. ज्ञान के लिए खोज (ब्रह्मचर्य)
2. पारिवारिक जीवन (गृहस्थ)
3. वन में वापसी (वानप्रस्थः) और
4. संसार जीवन की त्याग (संन्यास)

भगवान श्रीहरि महाविष्णु जी अपने चारों हाथ में क्रमशः अपने मन से निर्मित चार शक्तिशाली अस्त्र धारण करते हैं।
1. सुदर्शन चक्र (जो काल, त्वरित गति, दुष्ट विनाश और विश्व जीवन चक्र का प्रतीक है)
2. पाञ्चजन्य शंख (जो ॐ कार का प्रतीक और पंच तत्त्वों / भूतों की उत्पत्ति का स्रोत है)
3. ब्रह्म पद्म (भगवान् श्रीहरि महाविष्णु जी की श्रेष्ठता और उनकी हमेशा ताजा गुणवत्ता का प्रतिनिधित्व करता है) और
4. कौमोदकी गदा (जो शक्ति, ऊर्जा और खुशी का प्रतीक है)

भगवान् श्रीहरि महाविष्णु जी चार के चारों हाथ चार वेदों के रूप का प्रतीक भी हैं। इन सभी श्रेष्ठ गुणों और सर्वोत्तम भावों के कारण, भगवान् श्रीहरि जनार्दन जी को *श्रीचतुर्भुजः* नाम से पुकारा जाता है।

ॐ नमो भगवते श्रीवासुदेवाय नम