तिरुमऴिसै आऴ्वार | Tirumazhisai Azhvar
॥ सामान्य विवरण ॥
नाम : तिरुमऴिसै आऴ्वार
जन्म काल : 7वीं ई.पू.
जन्म स्थान : तिरुमऴिसै (तिरुवल्लूर / चेन्नई)
मास: पौष
नक्षत्र : मघा
जन्म दिन : रविवार
अंश : सुदर्शन चक्र
रचनाएँ : नान्मुखन् तिरुवंतादि, तिरुच्छंद वृद्धम्
गीताएँ : 216
पिता : भार्गव
माता : कनकांगी
अन्य नामों : भक्ति सारन, भार्गव नंदन, महीसार पुरीश्वर, मऴिसै पिरान आदि

॥ तिरुमऴिसै आऴ्वार की गाथा ॥
तिरुमऴिसै आऴ्वार को सुदर्शन चक्र (भगवान श्री महाविष्णु का दिव्य चक्र) का अवतार माना जाता है। इनका जन्म तिरुमऴिसै (जो वर्तमान चेन्नै का एक हिस्सा है) में हुआ था। इनके माता-पिता भार्गव और कनकांगी थे। सामान्य शिशुओं के विपरीत, तिरुमऴिसै आऴ्वार, 12 महीने की असामान्य अवधि तक अपनी माँ के गर्भ में रहे। जब कनकांगी ने तिरुमऴिसै आऴ्वार को जन्म दिया, तो वे बिना हाथ, पैर आदि के पैदा हुआ। दंपत्ति भार्गव और कनकांगी ने बच्चे को पास के जंगल में गन्ने की झाड़ियों के बीच छोड़ दिया। बच्चे का रोना सुनकर भगवान श्रीमन्नारायण और देवी महालक्ष्मी बालक तिरुमऴिसै आऴ्वार के सामने प्रकट हुए और इन्हें आशीर्वाद दिया, जिसके बाद वे एक पूर्ण और सुंदर बच्चे बन गये।

ये जन्म से एक ब्राह्मण थे। लेकिन एक निःसंतान आदिवासी समुदाय के दंपती ने इन्हें गोद ले लिया। तिरुवाळन और पंकज देवी (उपरोक्त निःसंतान आदिवासी समुदाय के दंपती) को इसी जंगल में गन्ने काटते समय सुंदर बच्चे तिरुमऴिसै आऴ्वार मिला और उन्होंने इन्हें अपने बेटे के रूप में गोद ले लिया। बालक तिरुमऴिसै आऴ्वार ने, न तो कुछ खाए ; न दूध भी पिए ; न ही बालक तिरुमऴिसै आऴ्वार अपने शरीर से अपशिष्ट पदार्थ के उत्सर्जन का कोई संकेत दिखाए। यह सुनकर एक वृद्ध कृषक दंपती उनके घर आये और उन्होंने गाय का दूध उबालकर बच्चे तिरुमऴिसै आऴ्वार को दिया।

सौभाग्य से बालक तिरुमऴिसै आऴ्वार ने उस घटना से दूध पीना शुरू कर दिए। बच्चे तिरुमऴिसै आऴ्वार के दत्तक माता-पिता ने भी वृद्ध कृषक दंपति को अपने बच्चे तिरुमऴिसै आऴ्वार को रोज़ दूध पिलाने की अनुमति दी। एक दिन बालक तिरुमऴिसै आऴ्वार ने आधा दूध पी लिए और वृद्ध कृषक दंपती से बचा हुआ दूध पीने को कहा। दंपती ने भी खुशी-खुशी बचा हुआ दूध पी लिया। चमत्कारी बात घटित होने लगी। बचा हुआ दूध पीने के बाद दंपती को अपनी युवावस्था वापस मिल गई। और समय आने पर उन्होंने एक सुन्दर बच्चे को भी जन्म दिया। चूंकि बच्चे का जन्म तिरुमऴिसै आऴ्वार द्वारा छोड़ा हुआ दूध पीने के फल से हुआ था, इसलिए बच्चे का नाम कनिक्कण्णन् रखा गया। यही कनिक्कण्णन बाद में तिरुमऴिसै आऴ्वार के आदिम शिष्य बन गये।

बड़े होने पर तिरुमऴिसै आऴ्वार ने सभी धर्मों के बारे में जानने और उस धर्म को चुनने का फैसला किया जो बिल्कुल सही हो। इसलिए उन्होंने बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म आदि का अध्ययन किया। तिरुमऴिसै आऴ्वार को उपरोक्त धर्मों में बहुत सारी गलतियाँ मिलीं। इसलिए उन्होंने शैव धर्म का पालन करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपना नाम शिव वाक्य रख लिया। वह भगवान शिव का कट्टर भक्त बन गया। भगवान श्री नारायण, जो अपने भक्तों के प्रति बहुत प्रिय थे, चाहते थे कि तिरुमऴिसै आऴ्वार को वास्तविकता का पता चले। इसलिए उन्होंने पेयाऴ्वार को खुद एक बूढ़े व्यक्ति के रूप में जाकर तिरुमऴिसै आऴ्वार को सच्चाई समझाने का निर्देश दिया। पेयाऴ्वार भी एक बूढ़े व्यक्ति के रूप में उस शहर में गए जहां शिव वाक्य रहते थे। बूढ़ा आदमी पौधों को उल्टा करके और टूटे हुए पानी के बर्तन से पानी देने लगा। वह भी पानी विहीन कुएं से पानी लाने के लिए उन्होंने फटी हुई रस्सी का इस्तेमाल किया। पेयाऴ्वार के कृत्य को देखकर, शिव वाक्य ने उनसे प्रश्न करना शुरू कर दिया - "हे श्रीमान! इस मूर्खतापूर्ण कार्य से आपको क्या हासिल होने वाला है ?" पेयाऴ्वार ने इस प्रकार उत्तर दिया - ''मैं जो कार्य कर रहा हूँ, वह मिथ्या शैव धर्म की प्रशंसा करने और उसका पालन करने के कार्य से कम मूर्खतापूर्ण है, जो वेदों और स्मृतियों के अनुसार नहीं है। वेद और स्मृतियाँ भगवान श्री नारायण को सर्वोच्च पुरुष घोषित करती हैं।

पेयाऴ्वार के साथ एक बड़ी बहस के बाद, शिव वाक्य को सच्चाई समझ में आई और उन्होंने तुरंत उनसे श्री वैष्णव की दीक्षा ले ली। पेयाऴ्वार ने उनका नाम तिरुमऴिसै आऴ्वार रखा। उन्होंने पेयाऴ्वार के साथ कई विष्णु मंदिरों का दौरा किया, विशेषकर भूतत्ताऴ्वार की जन्मस्थली तिरुवॆक्का को। तिरुमऴिसै आऴ्वार स्वयं कहते हैं

"साक्कियम् कऱ्ऱोम् समणम् कऱ्ऱोम्
शंकरनार् आक्किय - आगमनूल्
आराय्न्दोम् भाक्कियत्ताल्
वेंकट्करियानै चेर्न्दोम्॥"

[साक्कियम् कऱ्ऱोम् = बौद्ध सीखा ; समणम् कऱ्ऱोम् = जैन सीखा ; शंकरनार् आक्किय = शंकर द्वारा निर्मित ; आगमनूल् = आगम ग्रन्थों का ; आराय्न्दोम् = शोध किया ; भाक्कियत्ताल् = भाग्य से ; वेंकट्करियानै चेर्न्दोम् = (मुझे) भगवान श्री वेंकटेश की प्राप्ति हुई।]

"बौद्ध सीखा, जैन सीखा, शंकर द्वारा निर्मित आगम ग्रन्थों का शोध किया, भाग्य से (मुझे) भगवान श्री वेंकटेश की प्राप्ति हुई।"

ये भूतत्तऴ्वार के जन्म स्थान (तिरुवॆक्का, कांचीपुरम) में ही एक आश्रम बनाकर रहने लगे। कनिक्कण्णन इनके शिष्य बन गये। वहाँ आश्रम में एक वृद्ध कुंवारी स्त्री, जो एक कट्टर वैष्णव भक्त भी थी, इन आऴ्वार की सेवा करती थी। उसके द्वारा की गई सेवा से प्रभावित होकर, तिरुमऴिसै आऴ्वार ने उसकी युवावस्था को बहाल कर दिया और उसे उसकी इच्छानुसार सुंदरता प्रदान की। उस समय कांची पर शासन करने वाले पल्लव राजा ने इस स्त्री के अद्वितीय सौन्दर्य से आकर्षित होकर उससे विवाह किया था। उसने रानी से उसकी सुन्दरता के बारे में पूछा। रानी ने भी तिरुमऴिसै आऴ्वार की महिमा से घटित हुई घटनाओं की व्याख्या की। तभी से राजा अपनी जवानी और सुंदरता को पुनः प्राप्त करना चाहता था। इसलिए उसने आश्रम को एक संदेशवाहक भेजा। तिरुमऴिसै आऴ्वार ने कनिक्कण्णन को राजा के दरबार में भेजा।

कनिक्कण्णन उन्होंने राजा को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया - "योगी तिरुमऴिसै आऴ्वार हर किसी को ऐसा वरदान नहीं देंगे। केवल योग्य व्यक्ति ही ऐसे वरदान प्राप्त कर सकते हैं।" तब राजा को आऴ्वर के शिष्य के शब्दों से घृणा हुई। इसलिए उन्होंने कनिक्कण्णा से उन पर एक पद्य लिखने को कहा ताकि वे जा सकें। कनिक्कण्णा ने इसे भी यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि वे मात्र मनुष्यों पर कविताएं नहीं लिखेंगे। तब दरबारी कवियों ने कहा कि राजा भगवान का एक रूप है। तब कनिक्कण्णा ने एक कविता रची, लेकिन केवल भगवान पर, राजा पर नहीं। कनिक्कण्णा के कार्यों से क्रोधित होकर पल्लव राजा ने उन्हें, राज्य छोड़कर, स्थायी रूप से चले जाने का आदेश दिया।

सारी घटनाएँ सुनने के बाद तिरुमऴिसै आऴ्वार क्रोधित हो गये। फिर वे भगवान श्री नारायण के पास गये और इस प्रकार गाने लगे -

"कनिक्कण्णन् पोगिऱान् कामरु पूङ्काञ्ची
मणिवण्णा! नी किडक्क वेण्डा! चॆन्नाप्
पुलवनुम् पोगिऱेन्! नीयुम् उन्दन् पय्
नागप्पायै चुरुट्टिक्कॊळ्॥"

[कनिक्कण्णन् पोगिऱान् = कनिक्कण्णा जा रहा है ; कामरु पूङ्काञ्ची मणिवण्णा = हे कांची के स्वामी ; नी किडक्क वेण्डा = आप भी यहाँ मत रहें ; चॆन्नाप् पुलवनुम् पोगिऱेन् = मैं, कुशल कवि, भी जा रहा हूँ ; नीयुम् उन्दन् पय् नागप्पायै चुरुट्टिक्कॊळ् = आप भी अपना थैला और सर्प बिस्तर को बांधें]

"कनिक्कण्णा जा रहा है, हे कांची के स्वामी! आप भी यहाँ मत रहें। मैं, कुशल कवि, भी जा रहा हूँ। आप भी अपना थैला और सर्प बिस्तर बांधें।"

तब भगवान ने भी अपना सामान बांधा और आऴ्वार और कनिक्कण्णा के साथ कांची नगरी छोड़ दी। परमेश्वर की अनुपस्थिति में कांची ने अपना आकर्षण खो दिया और उजाड़ हो गया। तभी राजा को अपनी मूर्खता का एहसास हुआ। उसने आऴ्वार और कनिक्कण्णा के समक्ष अपना अपराध स्वीकार किया और उनसे देवों के देव को कांची वापस लाने के लिए कहा। राजा के वचनों से प्रसन्न होकर भक्ति सार तिरुमऴिसै आऴ्वार ने भगवान श्री नारायण से इस प्रकार प्रार्थना की -

"हे कांची के स्वामी! कनिक्कण्णा ने अपना मन बदल लिया है। आप भी कृपया अपना विचार बदलें और वापस आएँ। मैं, कुशल कवि, ने भी शहर छोड़ने का अपना विचार बदल दिया। आप भी वापस आ जाइये, अपना सामान रखिये और अपने सर्प-शय्या पर सो जाइये।"

भगवान ने भी अपने महान भक्त की बात मान ली। वे, परम प्रभु, कांची लौट आए। और उनके लौटने पर कांची का आकर्षण पुनः बहाल हो गया। चूँकि भगवान अपने भक्तों के कहे अनुसार कार्य करते थे, इसलिए उनका नाम तब से "यथोक्तकरी" भगवान पड़ा। तमिल में इसका मतलब है " चॊन्न वण्णम चॆय्द पॆरुमाळ"। इसके बाद तिरुमऴिसै आऴ्वार की महिमा अपने चरम पर पहुंच गई।

तिरुमऴिसै आऴ्वार ने प्रबंधम के 216 पद्यों की रचना की। इन्हें "नान्मुखन् तिरुवंतादि" और "तिरुच्छंद वृद्धम" नामक दो महान ग्रंथों में विभाजित किया गया है। योगी तिरुमऴिसै आऴ्वार ने अपने जीवन में ऐसे कई चमत्कार किये थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान श्री नारायण की भक्ति में समर्पित कर दिया, इसलिए वे भक्ति सार के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्होंने ही "जीवात्मा और परमात्मा सिद्धांत" का तथ्य प्रदान किया।

॥ तिरुमऴिसै आऴ्वार द्वारा कुंभाभिषेचित दिव्य देशों ॥
तिरुमऴिसै आऴ्वार अधिक दिव्य देशों में गायन के लिए गए और उन्होंने भगवान श्रीमन्नारायण की आज्ञा का पालन किया।

कुल 108 दिव्य देशों में से तिरुमऴिसै आऴ्वार ने स्वयं 2 मंदिरों का अभिषेक किया।

तिरुमऴिसै आऴ्वार (2)
1. कपि स्थल (श्री गजेन्द्र वरद भगवान मंदिर, कपि स्थल, तंजावूर)
2. अन्बिल (श्री वडिवऴगिय नम्बि मंदिर, अन्बिल, तिरुच्चिरापल्ली)

कुल 108 दिव्य देशों में से तिरुमऴिसै आऴ्वार ने अन्य आऴ्वारों के साथ 11 मंदिरों का अभिषेक किया।

तिरुमऴिसै आऴ्वार, तिरुमंगै आऴ्वार (1)
3. तिरु ऊरगम (श्री उलगळंद पॆरुमाळ मंदिर, तिरु ऊरगम, कांचीपुरम)

तिरुमऴिसै आऴ्वार, पेयाऴ्वार, तिरुमंगै आऴ्वार (1)
4. तिरुवल्लिक्केणि (श्री पार्थसारथी भगवान मंदिर, मुचुकुंदपुर, तिरुवल्लिक्केणि, चेन्नै)

तिरुमऴिसै आऴ्वार, पॆरियाऴ्वार, नम्माऴ्वार, तिरुमंगै आऴ्वार (2)
5. तिरुप्पेर नगर (श्री अप्पक्कुडत्तान भगवान मंदिर, तिरुप्पेर नगर, कोयिलडि, तंजावूर)
6. तिरुक्कुरुङ्कुडि (श्री निन्ऱ नम्बि मंदिर, तिरुक्कुरुङ्कुडि)

तिरुमऴिसै आऴ्वार, पेयाऴ्वार, पॊय्गै आऴ्वार, तिरुमंगै आऴ्वार (1)
7. तिरुवॆक्का (चॊन्न वण्णम चॆय्द पॆरुमाळ मंदिर, तिरुवॆक्का, कांचीपुरम)

तिरुमऴिसै आऴ्वार, पेयाऴ्वार, भूतत्ताऴ्वार, तिरुमंगै आऴ्वार (1)
8. तिरुप्पाडकम (पांडव दूत भगवान मंदिर, तिरुप्पाडकम, कांचीपुरम)

तिरुमऴिसै आऴ्वार, पेयाऴ्वार, भूतत्ताऴ्वार, पॆरियाऴ्वार, तिरुमंगै आऴ्वार (1)
9. तिरु गोष्ठीयूर (सौम्य नारायण भगवान मंदिर, तिरु गोष्ठीयूर, शिवगंगा)

तिरुमऴिसै आऴ्वार, पेयाऴ्वार, भूतत्ताऴ्वार, आंडाळ, पॆरियाऴ्वार, तिरुमंगै आऴ्वार, नम्माऴ्वार (1)
10. कुंभकोणम (शार्गंपाणि मंदिर, कुंभकोणम, तंजावूर)

तिरुमऴिसै आऴ्वार, पेयाऴ्वार, भूतत्ताऴ्वार, पॊय्गै आऴ्वार, नम्माऴ्वार, आंडाळ, पॆरियाऴ्वार, तिरुमंगै आऴ्वार, कुलशेखर आऴ्वार, तिरुप्पाणाऴ्वार (2)
11. तिरुपति (श्री वेंकटाचलपति मंदिर, तिरुपति, चित्तूर, आंध्र प्रदेश)
12. तिरुप्पाऱ्कडल (श्री क्षीराब्धि नाथ, क्षीरसागर)

तिरुमऴिसै आऴ्वार, पेयाऴ्वार, भूतत्ताऴ्वार, पॊय्गै आऴ्वार, नम्माऴ्वार, आंडाळ, पॆरियाऴ्वार, तिरुमंगै आऴ्वार, कुलशेखर आऴ्वार, तिरुप्पाणाऴ्वार, तोंडरडिप्पॊडि आऴ्वार (1)
13. श्रीरंगम (श्री रंगनाथ भगवान मंदिर, श्रीरंगम, तिरुच्चिराप्पळ्ळि)

॥ आऴ्वार तिरुवडिगळे शरणम् ॥