जानिए परम भगवान् श्रीहरि महाविष्णु जी के पांच दिव्य स्थितियाँ! पूज्य परमात्मा द्वारा केवल अपने प्रिय भक्तों को वरदान के रूप में दिया जाने वाला एक उत्कृष्ट उपहार। जानिए क्या हैं भगवान् श्रीहरि महाविष्णु जी के पञ्च दिव्य स्थितियाँ!

वेद और पुराण ग्रंथ कहते हैं कि अपने प्रिय भक्तों के भीतर (मन नामक पुष्प) में नित्य निवास करने वाले भगवान् श्रीहरि महाविष्णु जी, उन्हें आशीर्वाद देने के लिए पांच महा दिव्य चरणों का सहारा लेते हैं..... इन पञ्च स्थितियों पञ्च महा दिव्य स्थिती कहते हैं। वे हैं :

• परमं
• व्यूहं
• विभवं
• अन्तर्यामी
• अर्चा रूपं

१. परमं : श्री वैकुंठ धाम में भगवान् श्रीमन्नारायण जी भगवती श्री महालक्ष्मी जी, श्री भूमि देवी, श्री नीला देवी के साथ अलंकृत रूप में, श्री गरुड, श्री अनंत (शेष नाग) और श्री विष्वक्सेन जी आदि परम सैनिकों से घिरी हुई दिव्य स्थिती है। यह भगवान् श्री शुद्ध सत्व ज्ञान दिव्य मंगल वासुदेव जी का परम दिव्य रूप है।

२. व्यूहं : भगवान् श्री वासुदेव जी, भगवान् श्री प्रद्युम्न जी, भगवान् श्री अनिरुद्ध जी और भगवान् श्री संकर्षण जी आदि चार अवतारों के रूप हैं। ये संसार की रचना, रक्षा, संहार, ध्यान और उपासना के लिए हैं।

३. विभवं : यह परम पूज्य भगवान् जी द्वारा लिए गए अनेक प्रकार के मानव - प्राणि अवतारों को संदर्भित करता है। भगवान् श्री धन्वन्तरि जी, भगवान् श्री हयग्रीव जी, भगवान् श्री मत्स्य जी, भगवान् श्री कूर्म जी, भगवान् श्री वराह जी, श्री नरसिंह, श्री वामन, श्री परशुराम, श्री राम, श्री बलराम, श्री कृष्ण - इतने सारे अवतार के रूप में बारंबार परम भगवान्, दुनिया में हर समय के अनुसार प्रकट हुए। धर्म की रक्षा, अच्छाई प्रदान करने और बुराई को दंडित करने के लिए ही भगवान् अवतार लेते हैं। विभव को संक्षिप्त रूप से अवतार ही कहते हैं।

४. अन्तर्यामी : यह वह दिव्य स्थिती है, जिस में परमात्मा सभी जीवों के भीतर नित्य आत्मा के रूप अवतरित होकर निवास करते हैं ; शरीर में एक जीवित आत्मा के रूप में; हृदय में परम आत्मा के रूप में रहते हैं और पापों और जीवन की खामियों से अप्रभावित रहते हैं।

५. अर्चा रूपं : मंदिरों और देवालयों में हम जिन मूर्तियों की पूजा - उपासना करते हैं, वे दिव्य शिला पत्थर, सोना, चांदी, तांबा, हाथी दांत, लकड़ी, आदि से बनी हैं, और वे शिला प्रतीकात्मक हैं।

मंदिर में पूजा के इन शिला रूपों में से कुछ में, भगवान् पूरी तरह से रहते हैं। अर्चावतार में ही ईश्वर का स्वरूप सिद्ध होता है। इसलिए ही ऋषि - मुनि कहते हैं - "मंदिर जा कर, शिला दर्शन कर के, ईश्वर पूजा करना स्वयं भगवान् को देखने जैसा है। परमं, व्यूहं, विभवं, अन्तर्यामी और अर्चा रूपं - इन पांच दिव्य स्थितियों में इसलिए अर्चा रूप ही सर्वश्रेष्ठ है। अर्चा रूप में भी स्वयम्भू मूर्ति ही सर्वश्रेष्ठ हैं।"