षडारि - नम्माऴ्वार (षडगोप) जी के अवतार ; ऊपरी भाग - भगवान् के दिव्य चरण

• श्री भगवान् के दिव्य पादुका "षडारि" पर विराजमान हैं। पुराणों में कहा जाता है कि, भक्तों अपने सिर और कंधों पर प्रभु को बोझते हैं।

• इस पुण्य अनुष्ठान का उद्देश्य, मनुष्य को यह एहसास दिलाना है कि, "श्री भगवान् के बारे में सोचना ही प्रमुख और प्रधान कर्म है।"

• भक्त जनों, तुलसी तीर्थ (पवित्र तुलसी जल) को ग्रहण करने के बाद ही, "षडारि" को ग्रहण करते हैं। पेरुमाळ मंदिरों में इन दो पुण्य अनुष्ठानों के बिना पूजा पूरी नहीं होगी।

• "षडारि" = षट (छे) + अरि (रिपु) - जो 6 पापों का प्रतिनिधित्व करने वाली 6 हवाओं को नियंत्रित करनेवाला। "षडारि" को "षडगोप" भी कहते हैं। इसमें ऐसी शक्ति होती है कि यह हमारे दुर्भाग्य को भी अच्छे में बदल सकती है।

• "षडारि", बारह आऴ्वार संतों में से एक, "श्री षडगोप (नम्माऴ्वार)" के अवतार हैं। वे इस श्रेष्ठतम पद को श्री भगवान् के प्रति अपने संपूर्ण भक्ति के कारण प्राप्त किए।

• यह अनुष्ठान हमारे पापों को दूर करेगा। "भगवान के चरणों को शरण लेना ही सर्वोच्च कार्य है"। इस पवित्र अनुष्ठान के माध्यम से इस तथ्य को समझाया गया है।

• "भगवान ही अंतिम शरणार्थ हैं। उनके अलावा कोई भी, आपकी रक्षा नहीं कर सकता।" इसलिए, भक्ति और श्रद्धा के साथ भगवान् के चरणों का शरण लें। सभी पापों से मुक्ति पावें।

• बलि को चिरंजीवी पद मिला क्योंकि उसने अपना सिर भगवान् के चरण कमलों में समर्पित कर दिया था। भगवान् के चरणों की अपार शक्ति के कारण अहिल्या को श्राप से मुक्ति मिली। इस प्रकार यह सिद्ध तथ्य है कि षडारि प्राप्त करने से मुक्ति भी मिल जाती है।

• इस कलियुग में भगवान् हमारे सामने प्रकट नहीं होंगे। इसलिए प्रभु तक पहुँचने का एकमात्र उपाय है अपने आप को प्रभु के चरणों में समर्पित कर देना। षडारि के माध्यम से यह संभव है।

• इसलिए अपने सिर और कंधों पर "षडारि" प्राप्त करना न भूलें। आपको सर्वोच्च स्थान और मोक्ष मिलेगा। जय श्री हरि।